Shayari

राहों में चल रहा हूं मंजिल का पता नहीं…

राहों में चल रहा हूं मंजिल का पता नहीं

समंदर में उतर चुका हूं साहिल का पता नहीं

हजारों निगाहों का निशाना है जिस पर

उसे अपनी निगाहों में लिए फिर रहा हूँ

उसके होने का एहसास ढूंढता खामोशी से चल रहा हूं

किसी बारिश की तरह बरस जाएगी मुझ पर

इसी उम्मीद में बादलों के साए में चल रहा हूं!!